BIG UPDATE | डिंडौरी जिले के जागरूक सरकारी मुलाजिम ने नहीं चलने दी ट्राइबल असिस्टेंट कमिश्नर की मनमर्जी, हाई कोर्ट ने भी दिया साथ

  • अदालत के आगे नहीं चली ट्राइबल असिस्टेंट कमिश्नर की मनमानी

  • कर्मचारियों के शोषण पर HC सख्त, न्यूनतम वेतन देने का आदेश

  • सहायक आयुक्त आदिवासी विकास के मनगढ़ंत तर्क खारिज

  • कोर्ट ने लगाई सवालों की झड़ी, सहायक आयुक्त की बोलती बंद

  • कोर्ट ने सुनाया 45 दिनों में भुगतान करने का फैसला, वरना...


डीडीएन न्यूज़ | जबलपुर/डिंडौरी

डिंडौरी जिले के समनापुर ब्लॉक में कार्यरत एक दैनिक वेतनभोगी डाटा एंट्री ऑपरेटर को आखिरकार हाईकोर्ट से न्याय मिल गया। याचिकाकर्ता राजकुमार नंदा, जो जुलाई 2010 से कलेक्टर दर पर नियुक्त होकर कार्यरत थे, लगातार दो वर्षों से न्यूनतम मजदूरी की मांग कर रहे थे। लेकिन विभागीय अधिकारियों की लापरवाही और विरोधाभासी जवाबों के कारण मामला लंबा खिंचता रहा। आखिरकार हाईकोर्ट ने 17 सितंबर 2025 को अपना फैसला सुनाते हुए सरकार को 45 दिनों के भीतर न्यूनतम वेतन का पूरा भुगतान करने का आदेश दिया।

वेतन घटाकर कर दिया 5000 रुपए, कोर्ट ने बताया शोषण

याचिकाकर्ता को अक्टूबर 2021 तक श्रम आयुक्त द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी यानी 12,235 रुपए प्रतिमाह का भुगतान किया जा रहा था। लेकिन नवंबर 2021 से सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग के मौखिक निर्देशों पर अचानक वेतन घटाकर मात्र 5000 रूपये प्रतिमाह कर दिया गया। अदालत ने इसे "श्रमिक का शोषण" मानते हुए विभाग के रवैये को अवैध करार दिया।

कोर्ट में भी टालमटोल करता रहा आदिवासी विकास विभाग

मामले की सुनवाई के दौरान सहायक आयुक्त आदिवासी विकास ने बार-बार भ्रामक और विरोधाभासी जवाब प्रस्तुत किए। कभी कहा कि नियुक्ति पालक शिक्षक संघ ने की है, तो कभी दावा किया कि स्कूल प्रबंधन समिति ने नियुक्त किया। इतना ही नहीं, अनुभव प्रमाण पत्र भी पहले जारी किए गए और बाद में उन्हें जाली बताकर निरस्त कर दिया गया। इस पर अदालत ने अधिकारियों को कठोर फटकार लगाई और पूछा कि यदि नियुक्ति फर्जी थी तो वेतन का भुगतान किस आधार पर किया गया?

कोर्ट ने लगाई सवालों की झड़ी, सहायक आयुक्त की बोलती बंद

जस्टिस विवेक जैन की बेंच ने सुनवाई के दौरान विभाग से कई महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे, जैसे - 

  1. यदि नियुक्ति आदेश नहीं है तो कर्मचारी से किस आधार पर काम कराया जा रहा है?
  2. पालक शिक्षक संघ को नियुक्ति देने का अधिकार किस कानून से मिला?
  3. यदि कर्मचारी अंशकालिक है तो पूरे कार्यालय का काम कैसे चलता है?

सरकार सहित ट्राइबल विभाग के असिस्टेंट कमिश्नर इन सवालों का कोई ठोस जवाब नहीं दे सके और आखिरकार  सहायक आयुक्त को हलफनामे पर बिना शर्त माफी मांगनी पड़ी।

विभाग ने कंप्यूटर ऑपरेटर को माना फुल टाइम एम्पलाई

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि ब्लॉक शिक्षा अधिकारी का कार्यालय सुबह 10 से शाम 5 बजे तक चलता है। इस दौरान कंप्यूटर ऑपरेटर का काम अनिवार्य है। ऐसे में उसे अंशकालिक कहना और 5000 रुपये प्रतिमाह देना तर्कहीन है। कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता पूर्णकालिक कार्य कर रहा है, इसलिए उसे उच्च कुशल श्रमिक के लिए निर्धारित न्यूनतम मजदूरी देना ही होगा।

हाई कोर्ट ने 45 दिन में वेतन भुगतान का फैसला दिया

हाईकोर्ट ने सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए कि आदेश की तारीख से 45 दिनों के भीतर याचिकाकर्ता को पूर्व अवधि का बकाया न्यूनतम वेतन चुकाएं।इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया कि भविष्य में समय-समय पर घोषित दरों के अनुसार न्यूनतम वेतन का नियमित मासिक भुगतान भी सुनिश्चित करें।

दैनिक वेतनभोगियों के लिए बड़ी राहत, नई उम्मीद

हाई कोर्ट का ये फैसला न सिर्फ राजकुमार नंदा बल्कि उन हजारों दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए भी उम्मीद की किरण है, जिन्हें लंबे समय से न्यूनतम मजदूरी से वंचित किया जा रहा है। इस केस की नजीर देकर अब मध्यप्रदेश के अकुशल, अर्ध कुशल और कुशल श्रमिक भी तय वेतन से कम मिल रहे भुगतान के मामलों में इंसाफ ले सकेंगे।

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