BELIEF & RELIGION | ईद मिलादुन्नबी पर अक़ीदतमंदों ने डिंडौरी में निकाला जुलूस-ए-मोहम्मदी; घरों और मस्जिदों में मिलाद शरीफ़, हुई क़ुरआन खानी



डीडीएन रिपोर्टर | डिंडौरी

धार्मिक सहिष्णुता और मानवता के पैरोकार पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का जन्मदिवस यानी ईद मिलादुन्नबी मंगलवार को डिंडौरी में प्रेम और भाईचारे के साथ मनाया गया। अक़ीदतमंदों ने जुलूस-ए-मोहम्मद निकालकर शहर को अमन और चैन का संदेश दिया। मुख्यालय सहित शहपुरा, शाहपुर, मेहंदवानी, अमरपुर, भानपुर, बजाग, करंजिया, गोरखपुर, विक्रमपुर आदि क्षेत्रों में शांतिपूर्ण तरीके से हजरत मोहम्मद की सीरते-पाक (पावन चरित्र) का बखान किया गया। जुलूस-ए-मोहम्मद का आगाज़ सुबखार स्थित मस्जिद पंचतन पाक से हुआ, जो शहर के प्रमुख स्थानों से होकर जामा मस्जिद पर मुकम्मल हुआ। 



जामा मस्जिद के इमाम ने लोगों को दिया हज़रत मुहम्मद का पैग़ाम

जामा मस्जिद के इमाम मुफ्ती निसार अहमद ने जिलेवासियों को मुबारकबाद देते हुए कहा कि हज़रत मोहम्मद इंसानियत के तरफदार और परस्पर प्यार के पैरोकार थे। उन्होंने ताउम्र मोहब्बत का पैगाम दिया और बुग्ज़ (कपट) और ग़ीबत (चुगली) से सख्त परहेज किया। आज दुनिया में अमन और भाईचारे की सख्त जरूरत है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम हज़रत मोहम्मद के पैग़ाम को आम और उस पर अमल करें। शांतिपूर्ण आयोजन के लिए समुदाय के नागरिकों ने SDM महेश मंडलोई, तहसीलदार बिसन सिंह ठाकुर, कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर चंद्रकिशोर सिरामे, यातायात प्रभारी सब-इंस्पेक्टर राहुल तिवारी सहित पुलिस और प्रशासन के अमले का शुक्रिया अदा किया।



पैग़म्बरे इस्लाम की धार्मिक सहिष्णुता को बयां करते ऐतिहासिक दृष्टांत

हज़रत मोहम्मद की धार्मिक सहिष्णुता को रेखांकित करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण दृष्टांत हैं। 
एक दृष्टांत है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने 'मीसाके-मदीना' (मदीना का दस्तूर यानी संविधान) तैयार कराया था, जो उस दौर का पहला-दस्तूर था, जिसमें पैंतालीस दफआत (धाराएं) थीं। 'मीसाके-मदीना' दस्तावेजी शक्ल में था, जिसकी प्रारंभिक पंद्रह धाराओं में धार्मिक सहिष्णुता को प्राथमिकता देकर मुसलमानों और यहूदियों सहित अन्य अक़ीदे को मानने वाले लोगों को अन्तःकरण और विश्वास की स्वंतत्रता की बुनियाद को पुख्ता किया गया था। क़ुरआने-पाक के तीसवें पारे (अध्याय) की सूरे काफेरून की आयत में अल्लाह का इर्शाद है- 'लकुम दीनोकुम वलेयदीन' यानी तुम्हें तुम्हारा मज़हब मुबारक और मुझे मेरा। मतलब, 'हम अपने-अपने मज़हबी अक़ीदे पर कायम रहें।' कुरआने-पाक की उक्त आयत को हज़रत मोहम्मद ने अपने आचरण और व्यवहार (अमली ज़िंदगी) में लाकर धार्मिक सहिष्णुता का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत किया। यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि कुरआने-पाक की उक्त आयत (तीसवें पारे की सूरे-काफेरून की आयत 'लकुम दीनोकुम वलेयदीन') और पावन श्रीमद्भगवत गीता के सातवें अध्याय के इक्कीसवें श्लोक 'यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्घयार्चितुमिच्छति' अर्थात्‌ जिस भक्त की जैसी धार्मिक श्रद्घा हो उसी के अनुरूप आचरण करना। इसी प्रकार जैन दर्शन के 'स्याद्वाद' में धार्मिक सहिष्णुता बिल्कुल एकसमान परिलक्षित होती है। इसके अलावा भी कुरान में ऐसी कई आयतें हैं, जिनमें धार्मिक सहिष्णुता के उदाहरण मिलते हैं।

(सुपरिचित स्तंभकार अज़हर हाशमी के हवाले से)






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