Belief & Religion | डिंडौरी में मां रेवा के पावन तट पर लीलाधर श्रीकृष्ण की लीलाएं सुनाना मेरा सौभाग्य, भगवत कृपा से बढ़कर ब्रह्मांड में कोई दूसरी शक्ति नहीं : रक्षा सरस्वती

  • डिंडौरी के वार्ड-05 स्थित किशोरी रिसॉर्ट में सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत पुराण का शुभारंभ, धर्मधाला घाट से कथा स्थल तक निकली भव्य शोभायात्रा
  • वृंदावन धाम की कथा वाचक रक्षा सरस्वती ने पहले दिन सुनाए भागवत महात्म्य, कपिल-परीक्षित जन्म, शुकदेव आगमन आदि से जुड़े प्रेरक और रोचक प्रसंग


डीडीएन रिपोर्टर | डिंडौरी

'डिंडौरी बड़ी भाग्यवान नगरी है क्योंकि यह जीवनदायिनी मां रेवा की गाेद में बसी है। मेरा सौभाग्य कि मुझे पवित्र नगरी में मां नर्मदा के पावन तट पर लीलाधर श्रीकृष्ण की लीलाएं सुनाने का अवसर मिल रहा है। मुझ पर और समस्त जगत पर ईश्वर की असीम अनुकंपा है। भगवत कृपा से बढ़कर ब्रह्मांड में कोई दूसरी शक्ति नहीं है।' यह विचार वृंदावन धाम की कथा वाचक श्रीकृष्णानुरागी रक्षा सरस्वती ने शुक्रवार को डिंडौरी के वार्ड- स्थित किशोरी रिसॉर्ट में श्रीमद्भागवत पुराण की शुरुआत पर व्यक्त किए। नगर के प्रतिष्ठित सुशीला-रामलाल बर्मन परिवार की ओर से आयोजित सात दिनी संगीतमय श्रीमद्भागवत पुराण का शुभारंभ बिलैया धर्मशाला घाट से कथा स्थल तक भव्य शोभायात्रा निकालकर की गई। कलशयात्रा में नगर के सैकड़ों श्रद्धालु शामिल हुए। मुख्य यजमान रामलाल बर्मन ने बताया कि कथा स्थल पर कोविड-19 प्रोटोकॉल का ध्यान रखते हुए मास्क और सैनिटाइजर की व्यवस्था की गई है।अगले छह दिन कथा दोपहर 02:30 से शाम 05:30 बजे तक जारी रहेगी। 


भागवत महात्म्य से प्रारंभ हुई कान्हा की अलौकिक कथा 

पुराण के पहले दिन रक्षा सरस्वती ने भगवान कान्हा की अलौकिक कथाओं का वर्णन 'भागवत महात्म्य' से प्रारंभ किया। उन्होंने बताया, श्रीमद्भागवत पुराण सभी शास्त्रों का सार है। जब वेदों के संकलन और महाभारत, पुराणों की रचना के बाद भी वेदव्यास जी को शांति नहीं मिली तो उनके गुरु नारद जी ने श्रीमद्भागवत पुराण लिखने की प्रेरणा दी। यह वेदव्यास जी की आखिरी रचना है। वेदव्यास जी का नाम “कृष्ण द्वैपायन” है। कृष्ण का अर्थ श्याम वर्ण और द्वैपायन अर्थात् छोटा कद या द्वीप निवासी। व्यासदेव स्वयं भगवान के शक्त्यावेश अवतार थे और कलयुग का ध्यान कर उन्होंने वेदों को चार भाग में विभक्त किया। उन्होंने शास्त्रों को लिखित रूप में संरक्षित किया। इसी क्रम में कथा वाचक ने कपिल-परीक्षित जन्म और शुकदेव आगमन से जुड़े प्रेरक व रोचक प्रसंग भी सुनाए। श्रीकृष्णानुरागी रक्षा सरस्वती ने बताया, श्रीमद्भागवत पुराण में सहज और सरल जीवन जीने के लिए प्रेरणाओं का खजाना है। 

कल सुनेंगे सप्तऋषि वर्णन, कपिलोपाख्यान और ध्रुव चरित्र 

श्रीमद्भागवत पुराण में शनिवार को सप्तऋषि वर्णन, कपिलोपाख्यान, ध्रुव चरित्र और पुरंजनोपाख्यान की कथा सुनाई जाएगी। बता दें कि भगवान नारायण ही भागवत के प्रथम प्रवक्ता हैं। नारायण ने सर्वप्रथम भागवत कथा ब्रह्माजी को सुनाई, जिसे चतुश्लोकी भागवत कहते हैं। ब्रह्माजी ने पुत्र नारदजी को सुनाई और नारदजी ने व्यासजी को। व्यासजी ने भागवत को 12 स्कन्ध, 335 अध्याय और 18000 श्लोकों का विस्तार दिया। फिर व्यासजी ने यह भागवत कथा पुत्र शुकदेवजी और शुकदेवजी ने राजा परीक्षित को सुनाई। उसी समय यह कथा सूतजी ने सुनी और शौनकादि सहित 88000 ऋषियों को सुनाई।

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