स्मरण जननायक | भगवान बिरसा ने जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़कर बनाया जीवन का आधार, श्रेष्ठ कर्माें के बल पर बने 'धरती के आबा'

  • डिंडौरी कलेक्टोरेट में शौर्य और साहस की प्रतिमूर्ति बिरसा मुंडा की 145वीं जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन, कलेक्टर, SP, जिपं अध्यक्ष, जिपं CEO आदि रहे मौजूद



डीडीएन रिपोर्टर | डिंडौरी


'भगवान बिरसा ने अपने अल्प जीवनकाल में जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़कर लोगों में ऊर्जा का संचार किया और जीवन का आधार बनाया था। वह श्रेष्ठ कर्माें के बल पर 'धरती के आबा' बने। उनके योगदान को युगों-युगों तक याद किया जाएगा।' यह कहना था डिंडौरी जिला पंचायत अध्यक्ष ज्योति प्रकाश धुर्वे का, वह रविवार काे कलेक्टोरेट में शौर्य और साहस की प्रतिमूर्ति भगवान बिरसा मुंडा की 145वीं जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रही थीं। उन्होंने कहा कि जननायक बिरसा ने अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों का कड़ा विरोध किया और जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर किए। 


कार्यक्रम में कलेक्टर बी. कर्तिकेयन, SP संजय कुमार सिंह, जिला पंचायत CEO अरुण कुमार विश्वकर्मा, SDM महेश मंडलोई, आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त डॉ. अमर सिंह उइके, जिला खाद्य एवं आपूर्ति अधिकारी आरएम सिंह सहित जिला व जनपद स्तरीय अधिकारी-कर्मचारी मौजूद थे।



सीएम ने लिया वीरगाथाओं को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प


जिपं अध्यक्ष धुर्वे ने बताया कि सीएम शिवराज सिंह चौहान ने शहीद जननायक बिरसा मुंडा की वीरगाथाओं को जन-जन तक पहुचाने का संकल्प लिया है। इससे आने वाली पीढ़ियां बिरसा मुंडा के योगदान को याद रख सके। उन्होंने कहा, आजादी की लड़ाई में देश के कोने-कोने से आदिवासियों ने अंग्रेज सरकार से कड़ा संघर्ष कियाद। 15 नवंबर, 1875 को जन्मे बिरसा के पिता सुघना मुंडा और माता करनी मुंडा खेतिहर मजदूर थे। बिरसा बचपन से ही प्रतिभाशाली थे। उन्होंने ब्रिटिशों, क्रिश्चियन मिश्नरियों, भूपतियों और महाजनों के शोषण व अत्याचारों के खिलाफ छोटा नागपुर क्षेत्र में मुंडा आदिवासियों के विद्रोह (1899-1900) का नेतृत्व किया। 03 मार्च, 1900 को अंग्रेजों ने बिरसा को गिरफ्तार कर रांची जेल में बंद कर दिया। जेल में शारीरिक प्रताड़ना झेलते हुए 09 जून, 1900 को बिरसा वीरगति को प्राप्त हो गए। 


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