- शहपुरा के पास वनग्राम गढ़ी में मिले हैं पांडवों से जुड़े प्रमाण
- बाजन सिल्ली स्थान में स्थित पत्थरों से निकलती हैं धुनें
डीडीएन रिपोर्टर | शहपुरा/डिंडौरी
हस्तिनापुर में जुए में अपना राज-पाठ हारने के बाद पांडवों ने 12 साल तक का समश् वनवास में बिताया और एक साल का अज्ञातवास काटा। इस दौरान पांडव कई स्थानों पर रहे। पांडव रुकने के लिए ऐसी जगहों का चयन करते थे, जहां पर्याप्त मात्रा में जल और वनसंपदा हो। वर्तमान में मध्यप्रदेश में भी कई ऐसे स्थान हैं, जहां पांडवों के वनवास और अज्ञातवास काल के प्रमाण मिले हैं।
मौजूदा शहपुरा जपं के ग्राम पंचायत मगरटगर के पोषक वनग्राम गढ़ी और इसे आसपास के क्षेत्रों में भी पांडवकाल के निशान पाए गए हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि द्वापर युग में पांडव अज्ञातवास के दौरान यहां आकर ठहरे थे। इससे जुड़े कई प्रमाण यहां उपस्थित हैं। हालांकि अभी भी यहां गहन शोध की जरूरत है।
बाजन सिल्ली... जहां पत्थरों से निकलती हैं सुरीली धुनें
पोषक ग्राम गढ़ी के पास बाजन सिल्ली नाम का स्थान है। बाजन यानी बजने वाला और सिल्ली यानी पत्थर। अर्थात बाजन सिल्ली में पाए जाने वाले पत्थरों को अन्य सामान्य पत्थर से रगड़ने पर संगीत के मधुर सुर निकलते हैं। वर्तमान में स्थानीय लोग इस पत्थर की पूजा भी कर रहे हैं। उनका मानना है कि ये पत्थर पांडव काल के हैं और इनकी पूजा से सभी मन्नतें पूरी होती हैं। काफी संख्या में आसपास के लोग यहां आकर पूजा-पाठ करने आने लगे हैं।
पांडवों ने यहां अपना गढ़ बनाने की तैयारी की थी
गढ़ी और आसपास के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में बड़े-बड़े तराशे हुए पत्थर मिले हैं। जानकारों का मानना है कि पांडव अज्ञातवास के दौरान यहां पर अपना गढ़ बनाना चाह रहे थे और गढ़ बनाने से जुड़ी तैयारियां भी कर चुके थे, लेकिन अज्ञातवास की शर्त के मुताबिक उन्हें बिना किसी की नजर में आए समय काटना था। इसलिए कुछ कारणों से यहां गढ़ नहीं बन सका और नतीजतन तराशे हुए पत्थर यहां ऐसे ही पड़े रह गए।
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