Women's Day Special | विपरीत परिस्थितियों में भी मजबूत इरादों, अच्छी सोच और सच्ची लगन से समाजहित के लिए समर्पित डिंडौरी की यंग वुमन ब्रिगेड

  • फिल्म, राजनीति, खेल और सोशल सर्विस में वुमन एंपॉवरमेंट की मिसाल बनी डिंडौरी जिले की महिलाओं की जज्बे की कहानी 

  • 2021 के लिए इंटरनेशनल वुमंस डे की थीम ‘चूज़ टू चैलेंज’ है यानि अपने कामों के लिए खुद जिम्मेदारी उठाना

डीडीएन रिपोर्टर | डिंडौरी

हमारी जिंदगी में वैसे तो हर व्यक्ति का अपना खास स्थान और योगदान होता है, लेकिन महिलाएं न केवल अपने परिवार, बल्कि समूचे समाज के लिए ऑलराउंड रोल प्ले करती हैं। घर-परिवार में वह कभी मां, कभी बहन, कभी पत्नी तो कभी बेटी के रूप में योगदान देती हैं। वहीं, समाज के लिए कभी लीडर तो कभी टीचर की भूमिका निभाती हैं। दुनियाभर की नारी शक्तियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए हर साल 08 मार्च को इंटरनेशनल वुमंस डे मनाया जाता है। इस दिन समाज के प्रति महिलाओं के समर्पण को यादकर उन्हें सम्मान दिया जाता है। इस अवसर पर डिंडौरीडॉटनेट आपको जिले की उन महिलाओं से रूबरू करा रहा है, जिन्होंने मजबूत इरादों, अच्छी सोच और सच्ची लगन के साथ समाजहित के लिए खुद को साबित किया है। यूं तो हर दिन महिला दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए, लेकिन यूनाइटेड नेशन ने सालाना 08 मार्च को महिला दिवस मनाने का क्रम शुरू किया ताकि महिलाओं की उपलब्धियों को सम्मान दिया जा सके। 2021 के लिए महिला दिवस की थीम ‘चूज टू चैलेंज’ है यानि स्वयं के कामों के लिए खुद ही जिम्मेदारी लेना। यह उन महिलाओं की प्रशंसा करने का भी दिन है, जो व्यक्तिगत और पेशेवर लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हर दिन कड़ी मेहनत करती हैं। कुछ ऐसे देश भी हैं, जहां महिलाओं के साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता। इसलिए उन देशों में महिलाओं की आजादी के लिए विरोध प्रदर्शन होते हैं। कई लोगों के लिए महिलाओं की भूमिका केवल घरेलू कामों तक ही सीमित है। इसी धारणा को डिंडौरी की यंग वुमन ब्रिगेड ने पूरी तरह गलत साबित कर दिखाया है। वह कहती हैं कि आधुनिक दौर में इस मिथक को बदलने की सख्त जरूरत है। अब दुनिया लैंगिक समानता की ओर बढ़ चुकी है।

तैरने के शौक ने बना दिया विक्रम अवॉर्ड विनर कयाकिंग-केनोइंग में जीते 18 गोल्ड, 3 सिल्वर

- राजेश्वरी कुशराम | विक्रम अवॉर्डी खिलाड़ी (बजाग)

वॉटर स्पोर्ट एक्टिविटी केनोइंग-कयाकिंग में राजेश्वरी को 2019 में प्रदेश सरकार ने विक्रम अवॉर्ड प्रदान किया है। अब तक 18 गोल्ड और 03 सिल्वर जीत चुकी हैं। वह बचपन से तैरने का शौक रखती थीं। एक बार नदी में डूबते-डूबते बचीं और तभी ठान लिया कि अब पानी पर ही पैर जमाना है। राजेश्वरी ने बताया कि पानी पर करतब दिखाने का सफर मोहतरा में हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान शुरू हुआ। 2013 में टैलेंट सर्च कॉम्पिटीशन के जरिए वॉटर स्पोर्ट एकेडमी भोपाल की टीम और जिला खेल प्रशिक्षक आरती सोंधिया ने उनका चयन किया था। 10वीं के बाद भोपाल के न्यू ज्योति हायर सेकंडरी स्कूल से आगे की शिक्षा हासिल की। भोपाल के ही यूनीक काॅलेज से राजेश्वरी ग्रेजुएशन कर रही हैं। राजेश्वरी के पिता अजय सिंह किसान हैं। मां गृहिणी हैं और खेती-बाड़ी के काम भी करती हैं। आदिवासी क्षेत्र से ताल्लुक रखने के बावजूद राजेश्वरी ने खुद को साबित कर बड़ा मुकाम हासिल किया।

सोसायटी में महिलाओं को उचित स्थान दिलाने के लिए कॉलेज के दिनों से राजनीति में सक्रिय

- संतोषी साहू | महिला कांग्रेस जिलाध्यक्ष (गाड़ासरई)

मूलत: बिलासपुर के बिलगहना गांव की संतोषी साहू वर्तमान में महिला कांग्रेस जिलाध्यक्ष हैं। वह महिला अधिकारों की लड़ाई में सक्रियता से योगदान दे रही हैं। राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों समेत संतोषी तीन बेटियाें की मां की जिम्मेदारी भी निभा रही हैं। बेटियों में रिद्धि-सिद्धि नाम की जुड़वां हैं। तीसरी बेटी सृष्टि है। पति रामजी साहू और परिजनों के सपोर्ट से वह समाज में महिलाओं के उचित स्थान दिलाने की लड़ाई लड़ रही हैं। संतोषी राष्ट्रीय तेली-साहू महासंगठन के महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष भी हैं। उन्हाेंने बताया कि वह 2009 में गाड़ासरई में बहू बनकर आईं। शादी के बाद चंद्रविजय कॉलेज से एमए की पढ़ाई की। अभी कलिंगा यूनिवर्सिटी रायपुर से एलएलबी कर रहीं हैं। ग्रेजुएशन में गुरू घासीदास यूनिवर्सिटी में NSUI प्रेसिडेंट भी रहीं। संतोषी विधायक ओमकार सिंह मरकाम को राजनीतिक गुरु मानती हैं। वह 2017 में महिला कांग्रेस प्रदेश सचिव और 2019 में डिंडौरी महिला कांग्रेस अध्यक्ष बनीं। 

कठिन पेशे में खुद को किया साबित, 17 साल से बसों में बना रहीं टिकट

- सरोज राय | टिकट कंडक्टर (बिछिया)

सरोज जब दो साल की थीं, तब उनकी मां चल बसीं। 16 साल की उम्र में शादी हो गई। पति शराब पीकर परेशान करने लगा तो जिंदगी निराशा से भर गई। गांव की लड़की के लिए मायके के बाद ससुराल ही उसका घर होता है। ऐसे में जीवन में आगे बढ़ने के रास्तों पर पहाड़ सी चुनौतियां आ गईं। सरोज ने समाज की परवाह न करते हुए पति से अलग होकर रोजगार के लिए छोटी सी चाय-नाश्ते की दुकान खोली, लेकिन निराशा बरकरार रही। सरोज मजबूर हो गईं और जीवन के कठिन दौर में फंस गईं। काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने ट्रांसपोर्टेशन सर्विस (बस) में बुकिंग एजेंट बनने का फैसला किया। आज बसों में टिकट काटते हुए सरोज को 17 साल हो गए। वह इसी काम से परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं। सरोज ने बताया कि जिंदगी में ऐसे कई मौके आए जब वह बेतहाशा तनाव के दौर से गुजरीं, लेकिन कभी हार नहीं मानी। खुद को ऐसे पेशे में साबित किया, जिसे अमूमन पुरुषों का पेशा कहा जाता है।

बेसहारा जानवरों के खाने-पीने से लेकर इलाज तक का रखती हैं ध्यान

- तपस्या दुबे | सोशल वॉलेंटियर (डिंडौरी)

तपस्या नगर परिषद में कंप्यूटर ऑपरेटर हैं। जॉब के साथ वह करीब 10 साल से सोशल वॉलेंटियरिंग भी कर रही हैं। बेसहारा जानवरों के लिए तपस्या का प्रेम और समर्पण डिंडौरी के नागरिकों से छिपा नहीं है। उन्होंने कोरोनाकाल में भी घर से बाहर निकलकर घायल जानवरों का इलाज कराया और खाने-पीने की व्यवस्था की। वह अपनी गाड़ी की डिग्गी में बिस्किट, कुकीज, नमकीन बगैरह रखकर चलती हैं ताकि अाते-जाते भूखे जानवरों को खिला सकें। तपस्या बताती हैं कि उन्हें विभिन्न प्रजातियों के डॉग बचपन से पसंद हैं। वह जब भी किसी जानवर को घायल या भूख से तड़पता देखती हैं, उन्हें दुख होता है। सैलरी के रुपयों से वह जानवरों के लिए दवाओं और भोजन की व्यवस्था करती हैं। कभी-कभी दिक्कत आती है, लेकिन फैमिली की मदद से काम चल जाता है। शुरुआत में कुछ समस्याओं के बाद परिजनों ने भावनाएं समझीं और सहयोग करने लगे। तपस्या NGO बनाकर जानवरों की मदद करना चाहती हैं। 

डिंडौरी के छोटे से गांव मुड़िया खुर्द से निकलकर बड़े परदे तक का सफर

- आराधना सिंह परस्ते | एक्टर (मुड़िया खुर्द)

आराधना ने एक्ट्रेस विद्या बालन की अवेटिंग फिल्म ‘शेरनी’ में लेडी फॉरेस्ट ऑफिसर का रोल प्ले किया है। फिल्म इसी साल रिलीज हो रही है। आराधना लंबे समय से जबलपुर और भोपाल में थिएटर कर रही हैं। वह डिंडौरी की आदिरंग नाट्य संस्था की उपाध्यक्ष और जबलपुर के विवेचना रंगमंडल की सक्रिय सदस्य भी हैं। एक्टिंग उनका शौक है। वह छह साल से अपने शौक को बखूबी जी रही हैं। उन्होंने भोपाल स्थित मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय (MPSD) से कोर्स भी किया है। आराधना ने जबलपुर से इंजीनियरिंग (कंप्यूटर साइंस) की पढ़ाई के दौरान एक्टिंग में हाथ आजमाना शुरू किया। 2014 से 2018 तक उन्होंने स्टडी के बाद बचने वाले खाली समय का सदुपयोग किया और विवेचना रंगमंडल से जुड़ीं। यहां आराधना ने जमकर मेहनत की और ‘पांचाली’ सहित कई प्रसिद्ध नाटकों में अहम किरदार निभाए। भोपाल में भी कई नाटकों में अभिनय किया। वह अपनी सक्सेस का क्रेडिट मां तिलकवती और पिता केवल परस्ते को देती हैं।



आधिकारिक तौर पर 1975 से हुई थी इंटरनेशनल वुमंस डे की शुरुआत

 अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस शुरुआत में एक बड़ा श्रम आंदोलन था, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने स्वीकृति दी। इसकी शुरुआत 1908 में तब हुई, जब न्यूयॉर्क शहर में 15 हजार से अधिक महिलाओं ने काम के घंटे कम करने, बेहतर वेतन और वोट देने की मांग लेकर विरोध प्रदर्शन किया था। 

• 1909 में अमेरिकी सोशलिस्ट पार्टी ने पहली बार राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत की। अंतरराष्ट्रीय बनाने का विचार क्लारा जेटकिन नाम की महिला का था। उन्होंने यह आइडिया 1910 में कॉपेनहेगन में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑफ वर्किंग वुमन में दिया था। 

• कांफ्रेंस में 17 देशों की 100 महिला प्रतिनिधि हिस्सा ले रही थीं। सभी ने क्लारा के सुझाव का स्वागत किया। अंतरराष्ट्रीय दिवस पहली बार 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में बनाया गया। आज दुनिया 110वां दिवस मना रही है।

• आधिकारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने की शुरुआत साल 1975 में हुई। संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी के बाद कई देशों में आयोजन होने लगे। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1996 में पहली बार वुमंस डे की थीम भी चुनी, जो ‘अतीत का जश्न मनाओ, भविष्य की योजना बनाओ' थी।

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