- कथाव्यास रक्षा सरस्वती ने सुनाई बाललीला, माखनचोरी, गौचारण और श्रीगोवर्धन पूजा की कथा, सुशीला बर्मन और रामलाल बर्मन करा रहे पुराण का आयोजन
- गोवर्धन पर्वत उठाकर श्रीकृष्ण ने दिया संदेश | धरती से बुराइयों का अंत प्रकृति संरक्षण और गो-संवर्धन से ही संभव, लीलाधर ने कर्म के बल पर बदली संसार की दशा
डीडीएन रिपोर्टर | डिंडौरी
डिंडौरी के वार्ड-05 स्थित किशोरी रिसॉर्ट में बीते पांच दिन से जारी सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत पुराण कथा में मंगलवार को मां शारदे के प्राकट्य दिवस बसंत पंचमी पर भक्तों ने श्रीकृष्ण की मोहक बाललीलाओं का आनंद उठाया। कथा प्रांगण में बारिश की फुहारों के बीच कन्हैया की शरारत का ऐसा रंग जमा कि नगर में गोकुल-वृंदावन धाम का नजारा साकार हो उठा। आज कथाव्यास रक्षा सरस्वती ने श्रीकृष्ण बाललीला सहित माखनचोरी, गौचारण और श्रीगोवर्धन पूजा की विस्तृत कथा सुनाई। कथाव्यास ने पूतना वध प्रसंग के दौरान जीवनोपयोगी उदाहरण और शाब्दिक अर्थ बताए। उन्होंने कहा, 'पूत' यानि संतान और जिस महिला की कोख से संतान न जन्मे उसे 'पूतना' कहते हैं। साथ ही दूसरों के बच्चों के प्रति घृणा या द्वेष की भावना रखने वाली महिला को भी 'पूतना' कहा जाता है। रक्षा सरस्वती ने बताया कि कलयुग में भी बच्चों को कोख में ही मार देने वाली 'पूतनाएं' मौजूद हैं। पुराण का आयोजन सुशीला बर्मन और रामलाल बर्मन करा रहे हैं। कथा में रोजाना डिंडौरी सहित आसपास के दर्जनों गांवों के श्रद्धालु पहुंचकर प्रभु की कथाओं का रसपान कर रहे हैं। श्रीमद्भागवत पुराण में बुधवार को श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह, सुदामा चरित्र और द्वारका लीला का वर्णन किया जाएगा।
संसार में आते ही नटखट कान्हा ने सबको बनाया दीवाना
कथाव्यास ने माखनचोरी प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि नटखट गोपाल ने संसार में अवतरित होते ही सबको अपना दीवाना बना लिया। जब श्रीकृष्ण पहली बार घर से बाहर निकले तो उनकी बृज से बाहर मित्र मंडली बन गई। सभी मित्र मिलकर रोजाना माखन चोरी करने जाते थे। सब बैठकर पहले योजना बनाते कि आज किस गोपी के घर माखनचोरी करनी है। श्रीकृष्ण माखन लेकर बाहर आ जाते और सभी मित्रों के साथ बांटकर खाते। वह कहते कि जिसके यहां चोरी की हो उसके द्वार पर ही बैठकर माखन खाने में बड़ा आनंद आता है। कथा के दौरान वह प्रसंग भी आया जब जगत के पालनहार श्रीकृष्ण मैया यशोदा को अपने निर्दोष होने का प्रमाण देते हैं और मैया उनके छोटे से मुख में समूची सृष्टि के दर्शन कर लेती हैं। कथा के दौरान श्रद्धालु भगवान के विराट रूप में खोकर भावविभोर हो गए।
धरती पर व्याप्त बुराइयों के नाश के लिए उठाया गोवर्धन
श्रीगोवर्धन पर्वत की कथा में रक्षा सरस्वती ने बताया कि कान्हा की नगरी मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत एक समय में दुनिया का सबसे बड़ा पर्वत था। कहा जाता है कि यह इतना बड़ा था कि सूर्य को भी ढंक लेता था। इसे भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में अपनी उंगली पर उठाकर इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों की रक्षा की थी। गोवर्धन को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। गोवर्धन का दूसरा अर्थ है- 'गो-संवर्धन।' भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर यह साबित किया था धरती पर फैली बुराइयों का अंत केवल प्रकृति और गो-संवर्धन से ही संभव है। कथावाचक ने कहा, भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म के बल पर संसार को बदलने की शिक्षा दी है। वह कहते थे कि अगर हम बिना कर्म किए फल चाहते हैं तो यह हमारी भूल है। सृष्टि को अपनी दृष्टि से देखने लायक बनाने और मनवांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए कर्म ही सनातन विधान है। प्रभु की सरस ब्रजलीलाओं के प्रस्तुतीकरण के साथ कथाव्यास और भजन मंडली के सदस्यों की मधुर वाणी से सजे भक्ति संगीत ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।