देवऋषि नारद जयंती विशेष | सांस्कृतिक कालगणना के अनुसार नारद जयंती ही हिंदी पत्रकारिता दिवस, महर्षि नारद ही पत्रकारों के आदर्श

आलेख : मनोज जोशी, वरिष्ठ राजनैतिक संवाददाता (दैनिक भास्कर, भोपाल)



ईस्वी कैलेंडर के अनुसार 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। क्यों..? क्योंकि उस दिन यानी 30 मई 1826 को कोलकाता से देश के पहले हिंदी अखबार "उदंत मार्तण्ड" का प्रकाशन शुरू हुआ था। इस अखबार के पहले पन्ने पर महर्षि नारद की तस्वीर छपी थी और इस बात का जिक्र भी था। कानपुर से कोलकाता आकर वकालत करने पं. जुगलकिशोर शुक्ल ने साप्ताहिक अखबार शुरू करने के लिए मई का अंतिम मंगलवार क्यों चुना? वे चाहते तो 06 जून को पहले मंगलवार से या सप्ताह के किसी भी दिन से यह अखबार शुरू कर सकते थे। लेकिन उन्होंने नारद जयंती का दिन चुना, क्योंकि हमारे पौराणिक पात्रों में महर्षि नारद ही पत्रकारिता के पेशे के सबसे करीबी हैं। वे ही हमारे आदर्श हो सकते हैं। 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाना बिल्कुल वैसा ही है जैसे विवाह का मुहूर्त तो हिंदु पंचांग से निकलता है] लेकिन वैवाहिक वर्षगांठ ईस्वी कैलेंडर के हिसाब से मनाते हैं, लेकिन इस चक्कर में तिथि को क्यों भूलें?



यही वजह है कि यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नारद जयंती पर पत्रकार दिवस मनाता है तो वह मुझे अधिक तार्किक लगता है। वैसे आपको याद दिला दूं कि पं. शुक्ल का संघ से कोई संबंध नहीं था। संघ की स्थापना (ईस्वी सन 1925) से 99 साल पहले वे अपना अखबार शुरू कर चुके थे। उस समय तो आद्य सरसंघचालक डाॅ. केशव बलिराम हेडगेवार का भी जन्म नहीं हुआ था।


आइए, अब महर्षि नारद के संदेश और पत्रकारिता के सिद्धान्तों की बात करें...


जैसे एक रिपोर्टर अपनी बीट के हिसाब से अपना परिचय देता है कि मैं क्राइम रिपोर्टर या पॉलिटिकल रिपोर्टर हूं... उसी तरह पुराणों में महर्षि नारद को भागवत संवाददाता बताया गया है। नारद की ही प्रेरणा से वाल्मीकि ने रामायण जैसे महाकाव्य और व्यास ने भागवत गीता जैसे संपूर्ण भक्ति काव्य की रचना की थी।


अब जरा इसे देखिए और पत्रकारिता के कर्म और समान की अपेक्षाओं से उसकी तुलना कीजिए नारद का कोई अपना आश्रम नहीं है। वे निरंतर प्रवास पर रहते हैं, परन्तु यह प्रवास व्यक्तिगत नहीं है। इस प्रवास में भी वे समकालीन महत्वपूर्ण देवताओं, मानवों व असुरों से संपर्क करते हैं और उनके प्रश्न, उनके वक्तव्य व उनके कटाक्ष सभी को दिशा देते हैं। नारद जब कलह कराने की भूमिका में दिखाई देते हैं तो उन परिस्थितयों पर विचार करने से पता लगता है कि नारद ने विवाद और संघर्ष को भी लोकमंगल के लिए प्रयोग किया है। वे दानवों और मनुष्यों के भी न केवल मित्र और मार्गदर्शक बल्कि सलाहकार और आचार्य के रूप में दिखाई देते हैं। उनके जीवन के किसी भी प्रसंग को पढ़ें... तो नारद का कोई निजी स्वार्थ नहीं दिखेगा। वे हमेशा सामूहिक कल्याण या कहें कि लोक कल्याण की भावना से ही काम करते नजर आएंगे। मैं बहुत दावे से कहता हूं कि फील्ड में काम कर रहे ज्यादातर पत्रकार इस आदर्श के आसपास काम करते हैं। यही नहीं, नारद से जुड़े हर घटनाक्रम का विश्लेषण कर लीजिए , आपको वे एक सर्वश्रेष्ठ संचाराकर्ता के रूप में दिखेंगे। संचार ही तो पत्रकारिता है।


अब जरा नारद भक्ति सूत्र पर पत्रकारिता के हिसाब से विचार कीजिए..!


नारद भक्ति सूत्र का 15वां सूत्र तल्लक्षणानि वच्यन्ते नानामतभेदात अर्थात मतों में विभिन्नता व अनेकता है, यही पत्रकारिता का मूल सिद्धांत है। इसी सूत्र की व्याख्या नारद ने भक्ति सूत्र 16 से 19 तक लिखी है और उन्होंने बताया कि व्यास, गर्ग, शांडिल्य आदि ऋषिमुनियों ने भक्ति के विषय में अलग-अलग मत दिए हैं। अंत में नारद ने अपना मत भी दिया है, लेकिन उसी के साथ यह भी कह दिया कि किसी भी मत को मानने से पहले खुद उसकी अनुभूति करना और विवेक का इस्तेमाल करके निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए।


भक्ति सूत्र 20 में नारद ने कहा है- अस्त्येवमेवम्।। अर्थात यही है, परन्तु इसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है। यहां हमें पत्रकारिता की सीमा का अंदाजा होता है। इसी बात को सूत्र 52 में नारद ने अलग तरह से बताया है- मूकास्वादनवत्।। नारद का कहना है कि इस सृष्टि में अनेक अनुभव ऐसे हैं जिनकी अनुभूति तो है परन्तु अभिव्यक्ति नहीं है। विद्वानों ने इसे ‘गूंगे का स्वाद’ लेने की स्थिति की तरह बताया है। इसी प्रकार सूत्र 26 में कहा गया है- फलरूपत्वात्।। अर्थात पत्रकारिता संचार का प्रारंभ नहीं है यह तो सामाजिक संवाद का परिणाम है। यदि पत्रकारिता को इस दृष्टि से देखा जाए तो पत्रकार का दायित्व कहीं अधिक हो जाता है। इसके आगे अध्ययन करेंगे तो आप पाएंगे कि नारद सकारात्मक पत्रकारिता की बात करते हैं। उन्होंने सामाजिक भेद पैदा करने वाले और पेज थ्री वाली मसालेदार पत्रकारिता जैसे विषयों को त्यागने योग्य बताया है।


मैं तो मूल रूप से विज्ञान और तकनीकी का विद्यार्थी हूं। हमें आदर्श मशीन की परिभाषा पढ़ाई गई है। उसमें बताया गया है कि आदर्श मशीन की क्षमता 100 प्रतिशत होती है, फिर बताया कि आदर्श मशीन का निर्माण संभव नहीं है। जब प्रयोगशाला के भीतर एक तयशुदा वातावरण में आदर्श मशीन नहीं बन सकती तो तमाम झंझावत झेलते जीवन में आदर्श मनुष्य या आदर्श पत्रकार बनना लगभग असंभव ही है। लेकिन जिस तरह से वैज्ञानिक और इंजीनियर एक आदर्श मशीन तैयार करने में जुटे हुए हैं, वैसे ही हम भी एक आदर्श मनुष्य एक आदर्श पत्रकार बनने की जुगत में भिड़े रहें।



थोड़ी जानकारी उदंत मार्तण्ड के बारे में


उदन्त मार्तण्ड का अर्थ है ‘समाचार-सूर्य‘। अपने नाम के अनुरूप ही यह अखबार हिंदी की समाचार दुनिया के सूर्य के समान ही था। उस समय भारतीय समाज में चल रहे विरोधाभासों और अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ आम जन की आवाज़ को उठाने का काम करने वाले इस अखबार का प्रकाशन 19 दिसंबर, 1827 को बंद करना पड़ा। अखबार के प्रकाशन में चुनौतियां बरकरार हैं... बस उनका स्वरूप बदल गया है।


(ये लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।)



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