कृषि विज्ञान केंद्र डिंडौरी में तिलहनी फसलों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन
श्री विधि से सामान्य रोपा-बुवाई में भी मिलती है बेहतर फसल, थायोयूरिया भी लाभदायक
डीडीएन रिपोर्टर | डिंडौरी
महात्मा गांधी के 150वीं जंयती वर्ष के उपलक्ष्य में कृषि विज्ञान केंद्र, डिंडौरी की ओर से तिलहन फसल विस्तार और समूह पंक्ति प्रदर्शन तकनीक पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके तहत सात विकासखंडो में बीज वितरणहुआ। ग्राम पंडरिया, रूसामाल, खपरीपानी, पोढ़ी, धनरास आदि गांवों में 300 किसानों को कृषि संबंधी सामग्रियां भी दी गईं। इस दौरान कृषि विज्ञान केंद्र की प्रभारी क्लस्टर वैज्ञानिक निधि वर्मा और वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी रेणु पाठक ने सरसों, चना, मसूर, अलसी आदि फसलों की उन्नत उत्पादन तकनीक बताई। उन्होंने कहा, भारत में क्षेत्रफल की दृष्टि से सरसों की खेती मध्यप्रदेश समेत राजस्थान, यूपी, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, असम, झारखंड़, बिहार और पंजाब में प्रमुखता से की जाती है। कार्यक्रम में केंद्र प्रमुख व वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. शैलेन्द्र सिंह गौतम का मार्गदर्शन रहा।
श्री विधि से रोपें सरसों : सामान्य बुवाई में पाएं अधिक लाभ
वैज्ञानिक निधि और रेणु पाठक ने किसानों को बताया, सरसों की खेती रेतीली से लेकर भारी मटियार जमीन पर की जा सकती है। इसकी बेहतर फसल के लिए बुलई दोमट मिट्टी ज्यादा कारगर है। श्री विधि से सरसों की रोपाई करें। इसके लिए खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। श्री विधि में सामान्य बुवाई से अधिक उत्पादन मिलता है। ज्यादातर किसान सरसों की बुवाई सामान्य तरीके से ही करते हैं, जबकि श्री विधि से बुवाई कर बेहतर फसल पा सकते हैं। इस विधि से बुवाई करना आसान है। अक्टूबर से नवंबर तक का समय श्री विधि के उपयुक्त होता है।
बीज का चुनाव
- श्री विधि से बुवाई करने में किसी खास किस्म के बीज की जरूरत नहीं पड़ती। आप अपने क्षेत्र के हिसाब से विकसित बीज का ही चयन करें। अगर बीज पुराना हो नए बीज का प्रयोग करें।
बीज की मात्रा
- बीज की मात्रा फसल की अवधि पर निर्भर करती है। यदि अधिक दिनों की किस्म है तो बीज की मात्रा कम लगेगी और यदि कम दिनों की किस्म है तो बीज की मात्रा ज्यादा लगेगी।
खेत की तैयारी
जिस खेत में श्री विधि से सरसों की रोपाई करनी हो उस खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। यदि खेत सूखा है तो सिंचाई करके जुताई करें। फिर मिट्टी को भुरभुरा बना लें और खरपतवार को खेत से बाहर कर दें।
सरसों की खेती : कम सिंचाई में बेहतर उत्पादन
वैज्ञानिक निधि और रेणु पाठक ने कहा, सरसों की फसल कम सिचाई व लागत में दूसरी फसलों की अपेक्षा अधिक लाभ देती है। इसकी खेती में उपयुक्त किस्मों का चयन, संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग और पादप कीट रोग की रोकथाम कर किसान अच्छा उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं। सरसों के बेहतर उत्पादन के लिए जैव उर्वरक एजोटो बैक्टर का उपयोग अच्छे परिणाम देता है। जिंक की कमी वाली मिट्टी में जिंक डालने पर पैदावार करीब 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। वहीं, थायोयूरिया या जैव रसायन से भी सरसों की उपज में 20 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है। यह प्रभाव थायोयूरिया में मौजूद सल्फर के कारण पड़ता है। थायोयूरिया में 42% गंधक और 36% नाइट्रोजन होता है।
किसानों को दी सरसों की नई किस्मों की जानकारी
कार्यक्रम में किसानों को सरसों की नई किस्मों के बारे में बताया गया, जो वर्तमान में उत्पादकता और गुणवत्ता के लिहाज से सर्वोत्तम किस्में हैं। इनमें कम सिंचाई व लागत में अन्य फसलों की तुलना में अधिक लाभ होता है। किसान लगातार अपने सवालों में सरसों की नई और उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी मांग रहे थे। पिछले पांच वर्षों में भारत में स्थापित विभिन्न भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् संस्थानों द्वारा विकसित नई किस्मों की जानकारी भी दी जा रही है। भारत में सरसों के लिए सरसों अनुसंधान निदेशालय राजस्थान में है, जो लगातार किसानों की आय बढ़ाने के लिए काम कर रहा है।
मप्र की मिट्टी के लिए उपयुक्त सरसों की नई किस्में
वैभव (RK-1418), वरदान (RK-1467), RGN-73, आशीर्वाद (RK-01-3), वसुंधरा (RH-9304), RH-9801(स्वर्णा), वसुंधरा, माया(RK-9902), जगन्नाथ (VSL-5), NRCHB 101, कोरल 432 (PAC 432) |