DDN SPECIAL | दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराना मेरे लिए अविस्मरणीय, ऑक्सीजन रेगुलेटर खराब होने के बावजूद नहीं मानी हार : माउंटेनियर भावना डेहरिया

  • एवरेस्ट फतह की दूसरी सालगिरह पर मध्यप्रदेश की युवा पर्वतारोही भावना ने डिंडौरीडॉटनेट से साझा किया रोमांचक सफर का अनुभव

  • 22 मई 2019 को भावना ने तमाम बाधाओं को पार करते हुए 'सागरमाथा' पर की थी चढ़ाई, पढ़िए उनका एक्सक्लूसिव इंटरव्यू 



डीडीएन इनपुट डेस्क | भोपाल/डिंडौरी

"मेरा माउंट एवरेस्ट का सफर 2 अप्रैल 2019 को भोपाल से शुरू हुआ। मेरा दिल्ली तक का सफर ट्रेन से था। मेरे परिवार और मेरे वीएनएस कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. राजेश त्रिपाठी, वाइस प्रिंसिपल डॉ. बीएस भदौरिया और एचओडी डॉ. नीलेश व डॉ. रश्मि सहित कई सहपाठी मुझे स्टेशन छोड़ने आए। उन्होंने मेरा मनोबल बढ़ाना और मेरे मिशन के लिए बधाइयां दीं। 3 अप्रैल को दिल्ली से काठमांडू की मेरी फ्लाइट थी। जाते ही मैंने नेपाल का एक लोकल नंबर लिया जिससे मैं अपने लोगों से बात कर सकूं। एवरेस्ट पर उपयोग होने वाले इक्विपमेंट्स मैंने एक महीने पहले ही काठमांडू आ कर खरीद  लिए थे ताकि आखिरी समय में कुछ कमी या साइज का इशू न हो। 6 अप्रैल को हमें लूकला (2840 मी.) के लिए निकलना था लेकिन वेदर खराब होने के चलते उस दिन की सारी फ्लाइट कैंसिल हो गई थी। इस कारण हमें हेलीकॉप्टर से जाना पड़ा। लूकला पहुंचने ही हमने फाकडिंग की 2610 मी. का ट्रैक किया। 7 अप्रैल को हम नामचे बाजार पहुंचे जो 3440 मी. की ऊंचाई पर है। 



8 अप्रैल तक हम जलवायु-अनुकूलन के लिए यहीं रुके। 9 अप्रैल को हमने खुमजुंग जो कि ग्रीन वैली के नाम से भी जाना जाता है, वहां का 3780 मी का ट्रैक किया। 10 अप्रैल को टेंगबोचे मोनेस्ट्री 3860 मी पहुंचे और यहां पहली बार हमें एवेरेस्ट दिखाई दिया जिसने हमारा जोश दोगुना कर दिया। सबसे अच्छी बात यह भी रही कि मेरे शुद्ध शाकाहारी होने के बाद भी मुझे मेरी पसंद का खाना मिलता रहा। 11 अप्रैल को डिंगबोचे 4410 मी फिर 12 अप्रैल को लोबुचे 4910 मी पहुंच कर फिर जलवायु-अनुकूलन के लिए एक दिन यहां रुके। 14 अप्रैल को हम एवरेस्ट बेस कैम्प के लिए रवाना हुए जो कि 5364 मी की ऊंचाई पर है। बेस कैम्प पहुंचने के बाद 15 अप्रैल को शेरपा लोगों द्वारा लाम्बा को बुलवा कर पर्वत की पूजा की गई। 18 अप्रैल को हम वापस लोबुचे गांव आए। वहां से 19 अप्रैल को लोबुचे ईस्ट हाई कैम्प गए और 20 अप्रैल को यहां का पीक क्लाइंब किया और वापस लोबुचे गांव आए। 21 अप्रैल को हम वापस बेस कैम्प आए और 16 मई तक हमने तीन बार कैम्प 1, कैम्प 2 और कैम्प 3 के प्रैक्टिस रोटेशन राउंड किए जो कि बहुत कठिन थे। इसी बीच में हम एवरेस्ट बेस कैम्प से पुमोरी हाई कैम्प ट्रैक पर भी गए। 18 मई की सुबह फाइनल समिट के लिए मैंने एवरेस्ट बेस कैम्प से कैम्प 2 की 6500 मी की चढ़ाई शुरू की। एक दिन कैम्प 2 में रेस्ट करने के बाद 20 मई को हम कैम्प 3 की 7160 मी की चढ़ाई ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ की। 21 मई की सुबह कैम्प 3 से निकलने के बाद मुझे आगे की चढ़ाई के वक़्त रोप पर दो लाशें मिलीं जिन्हें देख कर में कुछ क्षण को सहम गयी। इसी रोप को पार करके मुझे आगे बढ़ना था। उस वक़्त मैंने अपने आप को संभाला और सोचा कि ऐसा मेरे साथ न हो इसलिए मुझे चढ़ाई पर काफी अलर्ट रहना पड़ेगा और अपना हौसला बड़ा कर आगे बढ़ गई। इसी दिन 7906 मी की ऊंचाई पर स्थित कैम्प 4 पहुंचे और कुछ घंटे आराम करने के साथ ही हमें वेदर अच्छा मिला और हम 21 मई की रात एवेरेस्ट समिट को निकल गए। 22 मई 2019 की सुबह 8848 मी की दुनिया के सबसे ऊंचे शिखर माउंट एवरेस्ट पर पहुंच गई। शिखर की चढ़ाई के वक़्त एक बालकनी आती है जहां ऑक्सीजन सिलेंडर चेंज करने के लिए रुका जाता है। इस दौरान मेरा ऑक्सीजन सिलेंडर का रेगुलेटर लीक करने लगा था। यह जान पर बन आने वाली बात थी। हमने डेढ़ घंटे लीकेज वाली जगह को ठीक करने का संघर्ष किया, मैंने और शेरपा ने हमारे पास मौजूद तीनों ऑक्सीजन सिलेंडर में रेगुलेटर बदल कर देखा पर लीकेज ठीक नहीं हुआ। इस कारण काफी ऑक्सीजन भी लीक होती रही। हमारे पास एक्स्ट्रा रेगुलेटर नहीं था। शेरपा के अनुसार हमंे वापस कैम्प-4 लौटना पड़ता। यह कठिन समय था और मैं वापस नहीं लौटना चाहती थी। शेरपा के काफी कहने पर भी मैं नहीं मानी और मेरी ज़िद के आगे शेरपा मान गया और मुझे अपना रेगुलेटर दिया और मुझे अकेले ही आगे जाने को कहा। 



मैंने इस सिचुएशन में अपने ऑक्सीजन सिलेंडर के प्रेशर को जरूरत से काफी कम रखा। अकेले चढ़ाई के वक़्त मैंने दूसरे व्यक्ति से अपने ऑक्सीजन का लेवल देखने को कहा पर उसके द्वारा ये नकार दिया गया। ये वो समय था जब मैंने अपने आप को एकदम अकेले और असहाय महसूस किया और यहीं आपको अपने शेरपा के अहमियत मालूम चलती है। अब मैंने ईश्वर को नमन किया और हनुमान जी का नाम ले फुर्ती से आगे बढ़ने लगी। समिट के थोड़े पहले एक पल ऐसे आया जब मैं खुशी से झूम  उठी और वो था मेरा पीछे मुड़ कर देखना। मेरा शेरपा सोनम तेज़ी से मेरी तरफ आ रहा था। उन्होंने रेगुलेटर ठीक कर लिया था। फिर हम शिखर पर पहुचे। वहां पहुंच कर मैंने सबसे पहले चारों तरफ का नज़ारा देखा। ईश्वर को धन्यवाद दिया। मन में आया हनुमान चालीसा पढ़ने का, लेकिन वहां इतने समय तक नहीं रुका जा सकता। फिर मैंने भारत का तिरंगा और मध्य प्रदेश के ध्वज के साथ फोटो ली और हमारे प्रदेश के तत्कालीन चीफ मिनिस्टर श्री कमलनाथ जी को धन्यवाद दिया जिनके सहयोग से मैं वहां तक पहुंच सकी। शिखर पर फोटो लेते वक्त अचानक मुझे शरीर में ऐसा लगा कि जान ही नहीं है और मैं बर्फ पर बैठ गयी। मेरा ऑक्सीजन सिलेंडर खाली हो चुका था। मेरे शेरपा ने जल्दी से उसको रिप्लेस किया। तब वापसी में संभली और दस मिनट शिखर पर रुकने के बाद वापस लौटने को तैयार हुई।''



शिखर पर मैंने परिवार की फोटो के साथ भी फ़ोटो ली जो मैं साथ ले कर गई थी। एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचना और फिर उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। यह धरती के सबसे ऊंचे शिखर पर पहुंचने की सोच से कहीं ज्यादा परे है। यह सिर्फ प्रदेश में पहली महिला में से एक बनने से कई ज्यादा महिला सशक्तिकरण और हिम्मत को बढ़ावा देना है। अगर मैं मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव की मध्यम वर्ग परिवार की लड़की माउंट एवेरेस्ट फतेह कर सकती हूं तो मेरा संदेश देश की लड़कियों को है कि किसी भी क्षेत्र में अगर वो दृढ़ निश्चय करें तो जीतना संभव है। हार न मानने की इच्छा और मेरी पसंद ही मुझे इस मुकाम पर ले कर आई। मैं तामिया जिला छिंदवाड़ा की रहने वाली हूं और मेरे पिताजी सरकारी स्कूल में शिक्षक है। मेरी मां सोशल वर्कर हैं। जिस तरह मेरे माता पिताजी ने मुझ पर विश्वास किया और डॉक्टर इंजीनियर से हट कर फिजिकल एजुकेशन की पढ़ाई और इससे रिलेटेड टूर और ट्रैकिंग के लिए हमेशा साथ दिया इसी तरह बाकी पेरेंट्स भी अगर अपने बच्चो की इच्छा को समझेंगे और उनका साथ देंगे तो देश में आने वाले समय में अलग-अलग क्षेत्र में काफी बच्चे अपने पेरेंट्स और देश का नाम रोशन करेंगे। इस पूरे सफर में मेरा स्वास्थ्य पूरी तरह ठीक रहा और आगे भविष्य में मौका लगा तो फिर मैं सागर माथा (Mt. Everest) जाना पसंद करूंगी। लेकिन उससे पहले दुनिया के कुछ और शिखर भी मेरे टू डू लिस्ट में है। मुझे पहाड़ों ने इतना नाम दिया है और मुझे इनसे बहुत लगाव है।"

- जैसा कि भावना डेहरिया ने डिंडौरीडॉटनेट को बताया (Mount Everest Summiter | Guinness World Record | Sportsperson | International Mountaineer)

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