PRIDE OF INDIA | डिंडौरी के पड़ोसी जिले उमरिया की 81 वर्षीय ट्राइबल आर्टिस्ट जोधइया बाई बैगा भारत के चौथे सर्वोच्च पुरस्कार 'पद्मश्री' के लिए नामित

  • इटली, फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका, जापान सहित कई देशों की इंटरनेशनल आर्ट गैलरी में डिस्प्ले हो चुके हैं जोधइया के बनाए आर्टपीस 

  • प्राचीन भारतीय पंरपरा में देवलोक की परिकल्पना, भगवान शिव, पर्यावरण और वन्य जीवों का महत्व बताती हैं जोधइया की पेंटिग्स



डीडीएन आर्ट&कल्चर रिपोर्टर | डिंडौरी के पड़ोसी जिले उमरिया की 81 वर्षीय ट्राइबल पेंटिंग आर्टिस्ट जोधइया बाई बैगा का नाम प्रशासन ने भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'पद्मश्री' अवाॅर्ड के लिए तय किया है। बाएं हाथ से कलाकारी को अंजाम देने वाली जोधइया की बनाई कृतियों से इटली, फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका, जापान सहित कई देशों की इंटरनेशनल आर्ट गैलरी सज-संवर चुकी हैं। जोधइया को बैगा जनजाति की ट्रेडिशनल पेटिंग में महारत हासिल है। उम्र के इस पड़ाव में भी जोधइया प्राचीन भारतीय परंपरा में देवलोक की कल्पना, भगवान शिव, पर्यावरण, वन्यजीव संरक्षण जैसे गंभीर विषयों पर कल्पना का प्रदर्शन कर रही हैं। 01 जनवरी 1950 को बैगा परिवार में जन्मीं जोधइया का जीवन प्रेरणा से भरा हुआ है। एक साल की उम्र में ही माता-पिता काे खो देने के बाद वह कभी स्कूल तो नहीं जा सकीं, लेकिन आज उनका व्यक्तित्व दुनिया के लिए सिलेबस है। कम उम्र से ही उन्हें मजदूरी करनी पड़ी। बकरियां चराईं और जंगल से लकड़ियां भी चुनकर लाईं। शादी के कुछ साल बाद पति भी चल बसे और जोधइया का जीवन अंधेरे में पड़ गया। तीन बच्चों को पालने की पूरी जवाबदारी उन पर आ गई।



गीता के उपदेश ने कठिन समय से बाहर निकाला


जोधइया ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा कि जीवन के कठिन पलों में उन्हें गीता के उपदेश का आसरा मिला। संकट के दिनों में श्रीकृष्ण की सीख 'कर्म करो, फल की चिंता मत करो...' को ध्यान में रखकर 50 साल की उम्र में उन्होंने चित्रकारी की ओर कदम बढ़ाया। उन्हें शांति निकेतन प्रशिक्षित कलाकार आशीष स्वामी का मार्गदर्शन मिला। अपने इर्द-गर्द के आदिवासी जनजीवन को चित्रों में ढालते-ढालते जोधइया आज ट्राइबल पेंटिंग के क्षेत्र में मिसाल बन चुकी हैं। स्वभाव से सहज-सरल जोधइया ने सीखने-सिखाने की कला को अपनी मजबूती बनाई और विश्वपटल पर छा गईं। 



उमरिया के पूर्व कलेक्टर स्वरोचिष सोमवंशी ने भी दिया प्रशासनिक संबल


आदिवासी कला-परंपरा को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने वाली जोधइया के हाथों में वो कला है, जिसके चलते उनकी गाेंडी चित्रकारी का प्रदर्शन विश्वपटल पर हो चुका है। उनकी आंखों की रोशनी पर जब उम्र का प्रभाव बढ़ने लगा, तो उनके गाइड आशीष स्वामी ने तात्कालिक उमरिया कलेक्टर स्वरोचिष सोमवंशी को सारी स्थिति बताई। कलेक्टर ने तत्काल उनकी आंखों के इलाज के लिए प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्थाएं उपलब्ध कराईं और जाेधइया की कला को राजाश्रय दिया। कला और कलाकार दोनों ही राजाश्रय और संरक्षण के अधिकारी होते हैं। हालांकि इसका सही अर्थ समझ पाने की आशा हमेशा पूरी हो, यह कम ही देखा गया है, लेकिन मौजूदा उमरिया प्रशासन ने उनकी कला का मोल समझा और भारत सरकार को जोधइया का नाम 'पद्मश्री' अवॉर्ड के लिए भेजा, यह अत्यंत सकारात्मक है। 


जोधइया की चित्रकारी ने कब और कहां किया कमाल



  • 2014 में मप्र जनजातीय संग्रहालय भोपाल में पेंटिंग एक्जिबिशन

  • 2015 में भारत भवन भोपाल में पेंटिंग एक्जिबिशन

  • 2016 में विंन्ध्य मैकल उत्सव सीएम से मिला सम्मान 

  • 2017 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्राहलय भोपाल में पेंटिंग एक्जिबिशन

  • 2018 में शांति निकेतन, पश्चिम बंगाल में पेटिंग एक्जिबिशन 

  • 2020 में आलियांस फ्रांसिस भोपाल में पेटिंग एक्जिबिशन

  • 2020 में आईएमए फाउंडेशन लंदन के ईवेंट में पटना में पार्टिसिपेशन


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