मध्यप्रदेश के डिंडौरी और उमरिया की कुशल आदिवासी महिलाओं की ग्लोबल एप्रोच पर केंद्रित खबरें...
- खबर एक... भागवती ने महज 11 दिन में लिखी किताब, आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी ने कराया प्रकाशित
- यह किताब लिखने में भागवती को भाेपाल के जानेमाने जनजातीय भाषा-कला विशेषज्ञ वसंत निरगुणे का मिला मार्गदर्शन
डीडीएन रिपोर्टर | डिंडौरी
आदिवासी बाहुल्य जिला डिंडौरी और यहां की ट्राइबल सुपरवुमन को हमेशा अंडररेटेड रखा गया। जब भी डिंडौरी की बात आती, सबकी नजरों के सामने एक ही दृश्य उभरता... आदिवासी। लोगों को लगता है कि ये आदिवासी आज भी वैसे ही हैं जैसे किताबों में सुना या देखा है। बिल्कुल देहाती। तन पर पहनने को पूरे कपड़े भी नहीं और सिर पर कलगी लगी टोपी। चांदी के वजनदार गहने पहनी महिलाएं सिर पर लकड़ी या फसल लेकर आ-जा रही हैं। लोगों को लगता है कि आदिवासी महिलाएं सिर्फ घर का चूल्हा-चौका देखती हैं। बच्चे को पीठ पर बांधकर खेती-बाड़ी और मजदूरी करती हैं। हां, करती हैं लेकिन कुछ महिलाएं... सभी नहीं। बहुत ऐसी भी हैं, जिनका परिचय उनकी खासियत और प्रतिभा से मिलता है। ऐसी ही एक आदिवासी महिला हैं डिंडौरी के चपवार गांव की रहने वाली भागवती रठुड़िया। इनकी खासियत यह है कि जिस युग में लाेग पूर्वजों की संपत्ति के लिए लड़ते हैं उस समय में भागवती ने पुरखों की लोककला को सहेजने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने बैगानी भाषा में 106 गीतों को किताब ‘बैगा गीत : अवसरानुकूल पारंपरिक गीत’ के रूप में पिरोया है। ये गीत किसी समय में भागवती के दादा-परदादा गाया-बजाया करते थे। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पढ़िए डिंडौरी की भागवती और उमरिया की लोक चित्रकार जुधैया बाई बैगा की ग्लोबल एप्रोच पर डिंडौरीडॉटनेट की स्पेशल रिपोर्ट...
किताब में सभी गीतों का हिंदी अनुवाद भी...
भागवती ने बताया, उन्होंने ये गीत मां से सुने थे, जिसे उन्होंने पुस्तक में संजो दिया है। किताब में लोधा, रीना, झरपट, करमा, ददरिया, बिरहा आदि 106 गीतों का संग्रह है। इन सभी गीतों का हिंदी अनुवाद भी किया गया है। भागवती ने यह किताब मात्र 11 दिनों में लिखी थी। उन्हें भोपाल के जानेमाने जनजातीय भाषा-कला विशेषज्ञ वसंत निरगुणे का मार्गदर्शन मिला है। इसका प्रकाशन आदिवासी लोककला एवं बोली विकास अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद ने कराया था। भागवती को इस विशेष योगदान के लिए सम्मानित भी किया जा चुका है।
खेती से वक्त बचाकर सहेजती हैं विरासत
आज की तेज भागती जिंदगी में किसी के पास एक काम के अलावा दूसरा करने का वक्त ही नहीं है। भागवती का मुख्य पेशा खेती-बाड़ी है। वे घर के सभी काम भी करती हैं। इन सबके बावजूद वो समय निकालकर लोक कलाओं को सहेजने का काम भी बखूबी कर रही हैं। उनकी इसी लगनशीलता का परिणाम है उनकी किताब ‘बैगा गीत’।
खबर दो... उमरिया की लोक चित्रकार जुधैया बाई की कला से सजी इटली के मिलान शहर की आर्ट गैलरी
आदिवासी कला-परंपरा को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए उमरिया की 80 वर्षीय लोक चित्रकार जुधैया बाई बैगा दशकों से काम कर रही हैं। लोढ़ा जैसे छोटे से गांव की जुधैया के हाथों में वो कला है, जिसके चलते उनकी गाेंडी चित्रकारी का प्रदर्शन इटली के मिलान शहर की आर्ट गैलरी में हो चुका है। इसके बाद जुधैया बाई आज तक नहीं रुकीं और लगातार चित्रकारी कर रही हैं। जुधैया बाई की आंखों की रोशनी पर जब उम्र का प्रभाव बढ़ने लगा, तो उनके गाइड आशीष स्वामी ने उमरिया कलेक्टर सोमवंशी को सारी स्थिति बताई। कलेक्टर ने तत्काल उनकी आंखों के इलाज के लिए प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्थाएं उपलब्ध कराईं। कला और कलाकार दोनों ही राजाश्रय और संरक्षण के अधिकारी होते हैं। हालांकि इस बात के सही अर्थ को समझ सकने की आशा हमेशा पूरी हो, ये कम ही देखा गया है।
(कंटेंट/फोटो : सुप्रिया अंबर)