- बैगा जनजाति की किसान उजियारो बाई केवटिया को अक्टूबर में JNKVV ने दिया उत्कृष्ट आदिवासी कृषक महिला सम्मान-2019
- अब कृषि विज्ञान केंद्र डिंडौरी में वैज्ञानिक सलाहकार समिति की सदस्य भी होंगी उजियारो बाई
डीडीएन रिपोर्टर | डिंडौरी/समनापुर
डिंडौरी जिले के समनापुर के पास स्थित आदिवासी गांव पौंड़ी किवाड़ की बैगा जनजाति की किसान उजियारो बाई को हाल ही में कृषि विज्ञान केंद्र डिंडौरी की कृषि वैज्ञानिक सलाहकार समिति का सदस्य चुना गया है। उजियारो ने वो कमाल कर दिखाया है, जो सुनने में किसी फिल्म की कहानी लगेगी... लेकिन यह हकीकत है। महज पांचवीं पास उजियारो ने डिंडौरी जिले में एडवांस्ड एग्रीकल्चर का परचम लहराया है। कभी सालभर में महज दो महीने का अनाज जुटा पाने वालीं उजियारो की कृषि पद्धति को आज साउथ अफ्रीका और फिलीपींस में अपनाया जा रहा है। वहां के किसान उनकी बताई तकनीक अपनाकर बंपर फसल उगा रहे हैं। उजियारो ने डिंडौरीडॉटनेट को बताया, हमारे पास खेती लायक जमीनें काफी पहले से उपलब्ध हैं, लेकिन जानकारी के अभाव और सही तरीके से खेती न कर पाने के कारण हमने काफी कष्ट और तकलीफें झेलीं। मेरा परिवार 12 महीनों में सिर्फ 55-60 दिन ही अनाज खाकर बिता पाता था। बाकी के दिनों में केवल चकौड़े की भाजी ही भोजन होता था। मैं अपने गांव के कुछ किसानों के साथ डिंडौरी आती-जाती रहती हूं। 2008 में हमें कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) डिंडौरी से जुड़ने का मौका मिला। उसी दौरान निवसीड NGO के बसंत रहंगडाले से भी संपर्क हुआ। केवीके की तकनीकी अधिकारी डॉ. रेणु पाठक के सहयोग से हमें मेंढ़ बांध और जल प्रबंधन तकनीक की जानकारी मिली। तब से वर्मी कंपोस्ट पिट बनाकर जैविक खाद बना रहे हैं। साथ ही बीजों को उन्नत कर उनका उपचार भी करते हैं।
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से इसी साल मिला है उत्कृष्ट कृषक अवॉर्ड
कृषि विज्ञान केंद्र डिंडौरी के प्रभारी और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शैलेन्द्र सिंह गौतम ने बताया, उजियारो की लगनशीलता के लिए उन्हें JNKVV जबलपुर के 56वें स्थापना दिवस पर अक्टूबर में उन्हें 'उत्कृष्ट आदिवासी कृषक महिला सम्मान' मिला है। यह सम्मान खेती में नवाचार, जंगल सुरक्षा व स्वच्छता के लिए उत्कृष्ट कार्य करने पर प्रदेश के कृषि राज्य मंत्री सचिन यादव और कृषि विवि के कुलपति प्रो. प्रदीप कुमार बिसेन ने दिया। उजियारो बाई को प्रशस्ति पत्र और 10 हजार रुपए का चेक मिला था। उन्हें पहले भी फसल उत्पादन, विक्रय, धान में एसआरआई पद्धति मिश्रित खेती, मल्चिंग, अमरबेल प्रबंधन, जैविक खेती, समन्वित कृषि प्रणाली, कोदो-कुटकी प्रस्संकरण, मक्का उत्पादन, केंचुआ खाद उत्पादन, कृषि यंत्रीकरण में श्रेष्ठ योदगान के लिए स्टेट, नेशनल और इंटरनेशनल अवॉर्ड मिल चुके हैं। उनकी उपलब्धियों की प्रदर्शनी भी केवीके समेत कई बड़ी दीर्घाओं में लगाई जा चुकी है।
सितंबर-15 में डरबन में आयोजित वर्ल्ड फॉरेस्ट्री कॉन्ग्रेस में भी हिस्सा ले चुकी हैं उजियारो बाई
दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर में 7 से 11 सितंबर तक आयोजित वर्ल्ड फॉरेस्ट्री कॉन्फ्रेंस-2015 में भी उजियारो बाई को जंगल संरक्षण विषय पर अपनी बात और योगदान प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया जा चुका है। उन्होंने वहां दुनियाभर के वैज्ञानिकों और रिसर्चर्स के बीच आदिवासियों की जीवनशैली और मौजूदा हालात पर विचार-विमर्श किया था। तब वहां के राजदूत ने उजियारो की कृषि पद्धति के बारे में जानकारी ली थी और काफी सराहना भी की।
उन्नत खेती ने उजियारो के जीवन में फैलाई रोशनी
उजियारो को मार्गदर्शन देने वाले कृषि वैज्ञानिक डॉ. हरीश दीक्षित ने बताया, उजियारो की आर्थिक स्थिति खराब थी। बैगाओं की आजीविका सुरक्षित करने के लिए 2008 में कृषि विज्ञान केंद्र व निवसीड संस्था ने आजीविका से संबंधित कार्य किया। इससे उजियारो बाई को भी जोड़ा गया। उन्होंने तेजी से उन्नत तकनीकें सीखीं और लगातार बढ़ती चली गई। आज वो कृषि क्षेत्र के लिए मिसाल हैं।
रिफरेंस : साभार अतुल शुक्ला | पत्रकार | नईदुनिया जबलपुर