कहानी उनकी; जिनसे रोशन है दीवाली : डिंडौरी जिले के माटी शिल्पियों पर केंद्रित डिंडौरीडॉटनेट की स्पेशल स्टोरी

रोशनी और दुआओं के शिल्पकार


20-30 रु. दर्जन से उपलब्ध हैं दीए, मंडला-चंिदया से मंगाते हैं मिट्टी


भीमशंकर साहू | डिंडौरी/शहपुरा


'जब तक एक भी कुम्हार है इस पूरी पृथ्वी पर, और मिट्टी आकार ले रही है... समझो कि मंगलकामनाएं की जा रही हैं..!' किसी कवि की यह पंक्तियां न केवल आज बल्कि सदियों पहले से प्रासंगिक हैं और युगों बाद तक भी प्रासंगिक होंगी। मिट्टी, न जाने कितने परिवारों का पोषण करती है। दीवाली पर यह मिट्टी किसी के घर में रोशनी करती है तो किसी के परिवार को सालभर का राशन जुटाने में मदद। हम बात कर रहे हैं माटी के उन शिल्पकारों की, जो अपने अथक परिश्रम से उसे सुंदर आकार देते हैं। रोशनी बांटने वाले दीयों-दीपकों का सृजन करते हैं। डिंडौरीडॉटनेट अपने दीवाली स्पेशल एडिशन के जरिए रोशनी और दुआओं के शिल्पकारों को सलाम करता है। यह अंक केंद्रित है डिंडौरी जिले के तमाम माटीकार, जिनकी मेहनत की वजह से दीवाली पर हर घर-आंगन रोशनी से नहा उठता है।


मंडला की मिट्टी से बने दीयों से रोशन होगी डिंडौरी नगरी


डिंडौरी नगर परिषद क्षेत्र के माटी शिल्पकार गुड्डा चक्रवर्ती ने डिंडौरीडॉटनेट से बातचीत में कहा कि पारंपरिक दीपक बनाने के लिए हमने मंडला जिले से मिट्‌टी मंगाई गई है। मंडला की मिट्टी दीपक बनाने के लिए बहुत अच्छी होती है। इस मिट्‌टी से बने दीपक बनाने के दौरान नहीं टूटते। हम इस बार लगभग 20 हजार नग मिट्टी के दीए सहित खिलौने और मिट्टी के ही फैंसी आइटम तैयार कर रहे हैं। हमें खुशी है कि लोग अब पारंपरिक दीपों की ओर लौट रहे हैं। चाइनीज दीयों की तुलना में पारंपरिक दीए सुदृढ़ और सस्ते होते हैं। हमारे साथ विडंबना यह होती है कि पारंपरिक दीयों को उचित प्रचार-प्रसार नहीं मिल पाता, जबकि चाइनीज आइटम बाजारों में छोटे-बड़े दुकानों में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। 



डिंडौरी जिले का संकल्प सिर्फ पारंपरिक दीए ही खरीदेंगे और जलाएंगे


डिंडौरी नगर परिषद क्षेत्र में पारंपरिक दीपक सजे हुए और बनते देखने को मिल रहे हैं। यहां चाइनीज़ दीपकों की जगह पारंपरिक दीयों को प्राथमिकता दी जा रही है। पारंपरिक दीयाें की खरीदारी और उपयोग के लिए डिंडौरी जिले के रहवासी संकल्पित हैं। साथ ही अनेक संगठन दीवाली से पहले मिट्टी के दीपक बांटने का समर्थन भी कर रहे हैं। मिट्टी के पारंपरिक दीपक खरीदने में जहां गरीब परिवारों की आय बढ़ेगी, वहीं देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमंद साबित होगी।


जितनी मेहनत उतना प्रतिसाद नहीं, परंपरा को जीवित रखना जरूरी है


गुड‌्डा चक्रवर्ती ने आगे बताया कि पिछले साल की अपेक्षा इस बार देसी दीपक की डिमांड पहले से ज्यादा बढ़ी है। चाइनीज दीपकों को लेकर जिले में गिरावट देखने को मिल रही है। पिछले साल 12 रुपए प्रति दर्जन की दर से देसी दीपकों की बिक्री हुई थी लेकिन अब 20 से 30 रु./दर्जन की दर से देसी दीपक बिक रहे हैं। हालांकि हम जितनी मेहनत करते हैं, उतना प्रतिसाद नहीं मिल पाता है। फिर भी परंपरा को जीवित रखना भी जरूरी है।


15-20 हजार रुपए खुद खर्च करके बनाते हैं रोशनी के पैमाने


बकौल गुड‌्डा चक्रवर्ती वाहनों के ईंधन के दामों में बढ़ोत्तरी का असर भी हम पर बराबर पड़ता है। इस साल मिट्टी के रेट काफी बढ़ गए हैं। अबकि हमने मंडला जिले से माटी मंगाई है। इसके दाम 15 से 20 रुपए प्रति ट्रक हैं। पारंपरिक दीयों के निर्माण के लिए हमें पहले करीब 20 हजार रुपए और अथक परिश्रम खर्च करना पड़ता है। तब कहीं जाकर हम रोशनी के उत्सव के लिए दीये बना पाते हैं। सरकार हमारे लिए कोई दुकान या स्थान भी उपलब्ध नहीं कराती। साथ ही जहां हम दुकान लगाते हैं, वहां का रोज का किराया भी देना पड़ता है। इस काम में परिवार का हर छोटा-बड़ा सदस्य लगा होता है।


शहपुरा के लिए चंदिया से मंगाई गई मिट्‌टी


शहपुरा विकासखंड से करौंदी के माटी शिल्पकार मंगल प्रसाद चक्रवर्ती ने डिंडौरीडॉटनेट को बताया कि उन्होंने दीपक बनाने के लिए उमरिया जिले के चंदिया व कुछ अन्य गांवों के खेतों से मिट्टी बुलवाई गई है। चंदिया की मिट्टी दीपक बनाने के लिए काफी अच्छी मानी जाती है। इस मिट्‌टी से बने दीपक काफी मजबूत होते हैं। मैं अपने परिवार के साथ पारंपरिक दीयों सहित खिलौने, गुल्लक और कुछ फैंसी आइटम भी तैयार कर रहा हूं। 


हमारे लिए सालभर इंतजार करते हैं माटी के महारथी...


फिजाओं में दीवाली के उत्साह ने रंग बिखेरना शुरू कर दिया है। रंगोली, पटाखे, नए कपड़े आदि से बाजार चकाचक सज गए हैं। वहीं, माटी के महारथी अब भी परिवार के साथ चाक घुमाने में लगे हुए हैं। वो जानते हैं कि कोई पारंपरिक दीपक खरीदे या नहीं, लेकिन उन्हें अपना काम तो करना ही है। वो हमारे घरों में रोशनी का प्रसार करने के लिए सालभर इंतजार करते हैं। मारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम देसी दीयों से ही दीवाली मनाएं। 


 


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